Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Feb 2017 · 4 min read

विरोध की कविता : “ जै कन्हैयालाल की “

विरोध की कविता : “ जै कन्हैयालाल की “
[ प्रथम संस्करण ]
+ डॉ. ब्रह्मजीत गौतम
——————————————————————
‘ तेवरी ‘ विधा के प्रणेता, कथित विरोधरस के जन्मदाता श्री रमेशराज की लघु कृति ‘ जै कन्हैयालाल की ‘ आज के समाज और समय की विसंगतियों और विद्रूपों का जीवंत दस्तावेज़ है | 105 द्विपदियों से समन्वित इस कृति को कवि ने ‘ लम्बी तेवरी ‘ नाम दिया है | प्रत्येक द्विपदी में एक प्रथक भाव या तेवर है, अतः कवि ने इसे ‘ तेवर-शतक ‘ भी कहा है | वस्तुतः ‘ जै कन्हैयालाल की ‘ एक प्रकार का उपालम्ब काव्य है, जिसमें कवि ने जनता रुपी गोपियों की आवाज़ उसके द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों रुपी उद्धव के माध्यम से हर उस शासक तक पहुँचाने का प्रयास किया है जो वेशभूषा से तो कृष्ण जैसा लगता है, किन्तु आचरण से कंस जैसा होता है | ‘ मनमोहन ‘ शब्द का साभिप्राय प्रयोग कर, परिकरान्कुर और श्लेष अलंकार से गुम्फित 101 वीं द्विपदी देखिये, जो काव्य-सौन्दर्य की दृष्टि से तो उत्कृष्ट है ही, कृति के उद्देश्य को भी बड़े कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करती है-
ऊधौ मनमोहन से बोल देना राम-राम
बैठे कान रुई डाल, जै कन्हैयालाल की |
कृति की द्विपदियां हमारे सामने समाज में व्याप्त शोषण, अत्याचार, कंगाली, भ्रष्टाचार, हिंसा, हड़ताल, महंगाई, आदि व्याधियों के दृश्य उपस्थित करती हैं | आज स्थिति यह है कि प्रतिभा-सम्पन्न लोग तो ठोकरें खाते फिरते हैं, किन्तु नक्काल मौज मनाते देखे जा सकते हैं | जनता को तो रोटी-दाल तक नसीब नहीं है, किन्तु नेताजी हर रोज तर माल हज़म कर जाते हैं | विश्वबैंक से कर्ज ले-लेकर देश को निहाल कर रहे हैं | सत्य को कब्र में दफ़नाया जा रहा है और झूठ नंगा नाच कर रहा है |
जहाँ कहीं कवि ने प्रतीकों का सहारा लेकर बात कही है, उसकी व्यंजकता कई गुना बढ़ गयी है | ऐसे कुछ तेवरों पर दृष्टिपात करना उचित होगा-

‘ विकरम ‘ मौन औ सवाल ही सवाल हैं
डाल-डाल ‘ वैताल ‘, जै कन्हैयालाल की |
आज़ादी के नाम पे बहेलियों के हाथ में
पंछियों की देख-भाल, जै कन्हैयालाल की |
जहाँ-जहाँ जल-बीच नाचतीं मछलियाँ
छोड़ दिये घड़ियाल, जै कन्हैयालाल की |
कवि का कटाक्ष है कि नेताओं को यदि त्रिभुज बनाना हो तो वे परकार को हाथ में लेते हैं | घोड़े तो धूप-ताप सहते हैं किन्तु गदहों के लिए घुड़साल खुली हुयी हैं | यहाँ ‘ फूट डालो राज करो ‘ की नीति अपनायी जाती है | पांच साल बाद जब चुनाव आते हैं तो नेताजी बड़े दयालु हो जाते हैं | अंत में कवि विवस होकर भविष्यवाणी करता है-
ऊधौ सुनो भय-भरे आपके निजाम का
कल होगा इंतकाल, जै कन्हैयालाल की |
104 वीं द्विपदी से सूचित होता है कि कवि ने यह लम्बी तेवरी वर्णिक छंद में रची है –
तेवरी विरोध-भरी वर्णिक छंद में
क्रांति की लिए मशाल, जै कन्हैयालाल की |
किन्तु यह कौन-सा वर्णिक छंद है, इसका उल्लेख नहीं किया है | फलस्वरूप शुद्धता की जांच नहीं की जा सकती है | छंद शास्त्र सम्बन्धी पुस्तकों के अवलोकन से विदित होता है कि इस छंद की लय चामर अथवा कुञ्ज से मिलती है | किन्तु ये दोनों छंद गणात्मक हैं | ‘ जै कन्हैयालाल की ‘ की अधिकांश द्विपदियाँ गणात्मक न होने के कारण दोषपूर्ण हैं | इनमें कोई एक क्रम नहीं है | कहीं पंक्ति में 14 तो कहीं 15 अथवा 16 वर्ण हैं | इसी प्रकार ‘ आदमी का सद्भाव कातिलों के बीच में ‘ के अंतर्गत ‘ बीच ‘ के आगे ‘ में ‘ का प्रयोग भर्ती का है | ‘ बीच ‘ शब्द के अंतर्गत ‘ में ‘ का भाव पहले से ही निहित है |
प्रकटतः इस तेवरी में ग़ज़ल का रचना-विधान दिखायी देता है | कवि की पत्रिका ‘ तेवरी-पक्ष ‘ में प्रकाशित तेवरियाँ भी सामान्यतः ग़ज़ल-फार्मेट में ही होती हैं | मतला, मक़ता, बहर, काफ़िया, रदीफ़, सबकुछ ग़ज़ल जैसा | किन्तु श्री रमेशराज उन्हें ग़ज़ल नहीं मानते | क्योंकि ग़ज़ल तो वह है जिसमें आशिक-माशूका के बीच प्यार-मुहब्बत की गुफ्तगू हो | ग़ज़ल का शाब्दिक अर्थ यही है | यदि श्री राज की इस मान्यता के अनुसार चलें तो आज दोहा, गीत, मुक्तक, आदि सभी कविताएँ तेवरी कही जानी चाहिए, क्योंकि उनमें भी जीवन के खुरदरे सत्य की चर्चा है | आज का नवगीत तो पूर्णतः अन्याय, अत्याचार, शोषण और राजनीतिक कुटिलता के विरुद्ध आवाज़ उठाता है | अतः वह भी तेवरी हुआ | समय के साथ-साथ आदमी का स्वभाव, पहनावा और आदतें बदल जातीं हैं, किन्तु उनका नाम वही रहता है | ‘ तेल ‘ शब्द का प्रयोग किसी समय मात्र तिल से निकलने वाले द्रव के लिए होता था, किन्तु आज वह सरसों , लाहा, मूंगफली, बिनौला, यहाँ तक कि मिट्टी के तेल के लिए भी प्रयुक्त होता है | ‘ मृगया ‘ शब्द का प्रयोग भी कभी केवल हिरन के शिकार के लिए होता था, किन्तु कालान्तर में वह सब प्रकार के पशुओं के लिए होने लगा | तो आज यदि समय के बदलाव के साथ ग़ज़ल का कथ्य बदल गया है तो वह ‘ ग़ज़ल ’ क्यों नहीं कही जानी चाहिए | अंततः कविता की कोई भी विधा अपने समय के अनुगायन ही तो करती है, अन्यथा उसकी प्रासंगिकता ही क्या रहेगी |
अस्तु, इस बात से विशेष अंतर नहीं पड़ता कि ‘ जै कन्हैयालाल की ‘ रचना एक लम्बी तेवरी है या लम्बी ग़ज़ल | मूल बात यह है कि यह समाजोपयोगी है और शिवेतरक्षतये के उद्देश्य की पूर्ति करती है | छान्दसिक अनुशासन की कतिपय शिथिलताओं के बावजूद यह पाठक की चेतना पर पर्याप्त सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है | साहित्य जगत में इसे पर्याप्त स्थान मिलेगा, यह विश्वास न करने का कोई कारण नहीं है |
—————————————————————–
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम, युक्का-206, पैरामाउन्ट, सिंफनी, क्रोसिंग रिपब्लिक, गाजियाबाद-201016 moba.- 9760007838

Language: Hindi
Tag: लेख
700 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"असम्भव"
Dr. Kishan tandon kranti
रमेशराज की कविता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की कविता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
जेठ सोचता जा रहा, लेकर तपते पाँव।
जेठ सोचता जा रहा, लेकर तपते पाँव।
डॉ.सीमा अग्रवाल
धर्म निरपेक्षी गिद्ध
धर्म निरपेक्षी गिद्ध
AJAY AMITABH SUMAN
नींद कि नजर
नींद कि नजर
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
बाल दिवस विशेष- बाल कविता - डी के निवातिया
बाल दिवस विशेष- बाल कविता - डी के निवातिया
डी. के. निवातिया
प्यार से मिला करो
प्यार से मिला करो
Surinder blackpen
4203💐 *पूर्णिका* 💐
4203💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
आख़िर उन्हीं २० रुपयें की दवाई ….
आख़िर उन्हीं २० रुपयें की दवाई ….
Piyush Goel
कहावत है कि आप घोड़े को घसीट कर पानी तक ले जा सकते हैं, पर म
कहावत है कि आप घोड़े को घसीट कर पानी तक ले जा सकते हैं, पर म
इशरत हिदायत ख़ान
प्रकृति और मानव
प्रकृति और मानव
Kumud Srivastava
मुक्तक
मुक्तक
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
हर एक सांस सिर्फ़ तेरी यादें ताज़ा करती है,
हर एक सांस सिर्फ़ तेरी यादें ताज़ा करती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आलेख-गोविन्द सागर बांध ललितपुर उत्तर प्रदेश
आलेख-गोविन्द सागर बांध ललितपुर उत्तर प्रदेश
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
दुश्मन कहां है?
दुश्मन कहां है?
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
* आ गया बसंत *
* आ गया बसंत *
surenderpal vaidya
गॉधी शरणम् गच्छामि
गॉधी शरणम् गच्छामि
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
पिता
पिता
Swami Ganganiya
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक - अरुण अतृप्त
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मैंने नींदों से
मैंने नींदों से
Dr fauzia Naseem shad
प्रेम
प्रेम
Sushmita Singh
*** तूने क्या-क्या चुराया ***
*** तूने क्या-क्या चुराया ***
Chunnu Lal Gupta
एक चाय तो पी जाओ
एक चाय तो पी जाओ
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
बहुत धूप है
बहुत धूप है
sushil sarna
शब्द ही...
शब्द ही...
ओंकार मिश्र
दुःख इस बात का नहीं के तुमने बुलाया नहीं........
दुःख इस बात का नहीं के तुमने बुलाया नहीं........
shabina. Naaz
सत्य की खोज
सत्य की खोज
लक्ष्मी सिंह
■ welldone
■ welldone "Sheopur"
*प्रणय*
Aaj Aankhe nam Hain,🥹
Aaj Aankhe nam Hain,🥹
SPK Sachin Lodhi
देख कर
देख कर
Santosh Shrivastava
Loading...