विरोध एक धारा
❤️विरोध एक धारा ❤️
एक दिन एक कुत्ते ने जिद्द किया कि उसे मामा के घर ( ननिहाल) जाना है, उसकी मां ने उसे समझाया कि तुम अकेले कैसे जाओगे, और वह बहुत दूर है। उसकी मां ने कहा रास्ते में और भी बहुत सारी बाधाए हैं तुम अकेले नहीं जा सकते और वहां पहुंचने में कम से कम दस दिन लगेंगे।
परन्तु कुत्ता तो निश्चय कर लिया था, जाने का और मा के लाख मना करने के बाद भी वह चल दिया। उसका सफर शुरू हो गया। अपनी भौगोलिक सीमा को वह पार कर लिया और अब अन्य की सीमा में प्रवेश करते ही उसका भरपूर स्वागत हुआ, उस गांव के सभी कुत्ते उसके मार्ग को अवरूद्ध करने का प्रयास करते रहे, कभी कभी तो उसको ऐसा लगा कि आज उसका अंतिम दिन है, परन्तु कभी भौंक के और कभी दांत दिखाकर धीरे धीरे आगे बढ़ता रहा और देखते देखते उस गांव की सीमा समाप्त हो गई और वे सभी कुत्ते वापस लौटने लगे। इसने तो मामा के घर जाने का निश्चय किया था, सो आगे बढ़ चला।
परन्तु अब इसको यह समझ में आ चुका था कि ये जो लोग मेरे मार्ग में बाधक है, उनकी एक भौगोलिक व सामर्थ्य की सीमा है।
इस तरह वह दूसरे से तीसरे और अपने गंतव्य की तरफ बढ़ता रहा। इस तरह हर पड़ाव की सीमा पर उसका स्वागत होता रहा और सीमांत तक विदाई। अब उसकी यात्रा में लय आ चुका था और अब उसका भरपूर आनंद उठा रहा था। अपनी धुन में मस्त, लक्ष्य पर निगाहें चलता रहा। न भूख, न प्यास और किसी पड़ाव पर आराम करने का तो सवाल ही पैदा नहीं हुआ।
इस तरह वह मामा जी के घर पहुंच गया, मामा ने कहा अरे, तू इतना जल्दी आ गया, अभी तो तुझे चले तीन दिन भी पूरे नहीं हुए और पहुंच भी गया। ये तो असंभव को संभव कर दिया तुने बेटा। वह मामा को देखकर खुश था वह अपने निश्चय को पूरा करके आह्लादित था, मन ही मन।
मामा भी भांजे को पाकर बहुत खुश था, सहसा पूछ बैठा की अच्छा बताओ यह तुने किया कैसे? बहुत ही नम्रता से कुत्ता बोला, जिसके बिरादरी वाले इतने स्नेही व जागरूक हो, उसके द्वारा कोई भी काम संभव है। अतः इसका सारा श्रेय बिरादरी वालो को जाता है, जिन्होंने लगातार मेरी गति को अनुकूल हवा दिया, समझे मामू!
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