विरासत
विरासत (वीर रस )
उसे विरासत जानो प्यारे,
जो मिलती हैं अपनेआप।
यह प्रदत्त संपदा धरोहर,
यह पूर्वज के दिल का माप।
अगली पीढ़ी को मिलती है,
सदा विरासत भेट स्वरूप।
इसको पा खुश होता मानव,
धन वैभव का हार्दिक रूप।
यह संस्कृति भौतिक आध्यात्मिक,
करती रहती पीढ़ी पार,
यही सनातन भाव मूल्य है,
हस्त अंतरण सदा बहार।
इसको जो सँभाल कर रखते,
वही धनी है अति बड़ भाग।
पूर्वज़ की वे पूजा करते,
मन में दिव्य शिष्ट अनुराग।
मात पिता से मिली विरासत,
आती है जीवन में काम।
संस्कारों से सहज सुसज्जित,
बालक करते रोशन नाम।
उत्तम पृष्ठ विरासत का है,
मुखड़ा है मोहक अनमोल।
सुरभित दिव्य विरासत सुन्दर,
के सुगंधमय अमृत बोल।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।