विराट सौंदर्य
तुम सच एक विराट सौंदर्य हो
हर प्रकंप तुम्हारा है
हर दृश्य तुम्हारा है
विषद् श्वेत मेघ तुम्हारे हैं
और
विप्लव कर्ता मेघ भी तुम्हारे हैं।
कभी निर्धनता में दर्श होते हैं तुम्हारे
तो कभी महलों की ऊंची – ऊंची
अट्टालिकाओं की तुम बनते हो शोभा।
चींटी से भी तुच्छ प्राणी में तुम हो
नगण्य है अस्तित्व जिसका
मानव समक्ष
उसमें भी
सांसों का आधार तुम हो
प्रलयंकारी बाढ़ में तुम हो,
ज्वालामयी धूप भी इंगित तुम्हारा है।
कई बार तुझे
समझने का
प्रयत्न किया है मैंने
कई बार तुझे करीब से
देखना चाहा मैंने
परंतु
जब – जब भी मैंने ऐसा किया है
मेरी आंखें चुंधिया गई हैं
तुम्हारा विराट भव्य सौंदर्य देखकर।
मैं एक क्षुद्र ,हेय ,तुच्छ, नगण्य,अस्तित्व कई बार करता हूं भूल
तुम्हें समझने की-
वास्तव में तुम तो समझ से बाहर हो पकड़ से बाहर हो।
फिर एकाएक
तुम्हें आत्मसात करता हूं मैं
अपनी हर धड़कन में
अपनी हर सांस में
और
प्रत्येक उस स्पंदन में
जो होता है मेरे चारों ओर
परिचायक है जो
तुम्हारी उपस्थिति का
और
उस विराट भव्य सौंदर्य का
एक अंश होने का।
हे सनातन विराट !
हे सनातन नूतन !
समर्पित समग्र तेरा तुझको
समर्पित तेरा तुझको –
नमन कोटि तुझको –
नमन कोटि तुझको ।