विरह
चाँदनी विभावरी,रोष में विलीन हो!
ढूँढती पुकारती त्याग चैन नींद वो।।
री! गये पिया कहाँ छोड़ के मुझे यहाँ?
फूट- फूट रो रही,रैन-सुख विहीन हो।।
कूह-कूह कोकिला हूक सी उठा रही।
व्योम से धरा विलग सूखती ही जा रही।।
पीर को जगा रही है समीर सोहना।
क्यों भुला दिया पिया,तोड़ प्रीति मोहना।।
नीलम शर्मा ✍️