विरह
आज का कार्य – चित्रलेखन
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छिप छिप झांके चंद्र धवल, बादल के पट खोल।
शोभित श्वेत वसन नहीं,तू क्यों है मूक अनबोल।
हो,विकल लहरें पूछतीं, विरहन से हृदय की बात।
हो गुमसुम क्यूं पथरा गई,क्यूं शिथिल हुए जज़्बात।
मूक अमूक होकर बोली,अब चुभती चांदनी रात।
सुन,पी बिन सूना है जगत,वृक्ष हुए ठूंठ, बिन पात।
बोली चांदनी चांद से,गौरी हृदय लगा अति आघात।
नीलम न जाने कब होगी सुबह और कब खिले प्रभात।
नीलम शर्मा