विरह !
सोचा नहीं था,
तुम्हारी चाहत की खातिर
अंगारो पर चलना होगा,
शोलो में जलना होगा,
तुम्हारा प्यार था ये,
या कोई नफरत का सिला,
पर मुझे तुमसे
नही कोई गिला।
होगी कोई मजबूरी,
जो आयी बीच दूरी।
ना निभा सके किये वादे,
बदल गये तुम्हारे इरादे।
तुम्हारी याद में आज भी,
विरह में जल रहा हूँ,
जहर का घूट पीकर
फिर भी में चल रहा हूँ।
अपना इस जहां में
कोई नही है यारा।
तुम खुश रहो हमेशा,
दिल देता दुआ हमारा।
मुकेश गोयल ‘किलोईया’