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2 Dec 2024 · 1 min read

विरह व्यथा

विरह
मोह को
गहराता है
और मोह से
गहराता है
दुख

दुख से
दर्द
उपजता
है
और दर्द से
पसीजता है
दिल

पसीजे दिल
से रिसते हैं
आंसू और
आंसुओं की
धार से
उठता है धुआं

यही धुंआ
बनते
हैं बादल
जो जा कर
जमकर
बरसते हैं
पिया के देस

उस
धुआं धार
वर्षा को
देख धरा
कहती है
माटी से

“ज़रूर
दूर देस में
एक दिल
विरह
के दर्द
से
पसीजा
है.”

© मीनाक्षी मधुर
Image Source: Radha Krishna Aesthetic by Lalitha Murali on Pinterest

Language: Hindi
43 Views

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