विरह व्यथा
विरह
मोह को
गहराता है
और मोह से
गहराता है
दुख
दुख से
दर्द
उपजता
है
और दर्द से
पसीजता है
दिल
पसीजे दिल
से रिसते हैं
आंसू और
आंसुओं की
धार से
उठता है धुआं
यही धुंआ
बनते
हैं बादल
जो जा कर
जमकर
बरसते हैं
पिया के देस
उस
धुआं धार
वर्षा को
देख धरा
कहती है
माटी से
“ज़रूर
दूर देस में
एक दिल
विरह
के दर्द
से
पसीजा
है.”
© मीनाक्षी मधुर
Image Source: Radha Krishna Aesthetic by Lalitha Murali on Pinterest