विरह रूप (प्रेम)
तेरे मेरे है दरमियां
कटती है रातें शामों सुबह ।
ये कैसी उलझन है बढ़ गई
तेरे मेरे फसलों में कहीं ।।1।। तेरे –मेरे……
कभी ना एक पल अकेले रहे
कभी ना तुझ बिन जी ना सके ।
ये वक्त भी कैसा समय ला गया
दूरियों को कैसी जगह दे गया ।।2।। तेरे –मेरे……
अब भी सिसकना ना होता है कम
तेरी दूरियों का है ये गम ।
अब तो बुला लो अपने संग
जो भी होगा देखेंगे हम ।।3।। तेरे –मेरे……
मैं खो सी गई हूं तुम्हारे बिन
अब कहीं भी ना लगता है मेरा मन ।
कब होगा तुझसे मेरा मिलन
बुलाओ बुलाओ मुझे अपने घर ।।4।। तेरे –मेरे……