यादों की है कसक निराली
साँझ प्रीति की सुभग सलोनी,
चाँद उतरता नभ-आँचल में।
यादों की है कसक निराली,
विरह विदित हर बहते पल में।
नेह-रश्मियाँ सजा रही हैं,
नयनों के मतवाले घट को।
यादों के बलखाते कुंतल,
महकाते प्रियवर के पट को।
सुधा सजल अधरों का चुंबन,
ज्यों अमृत भर दिया हो तल में।
यादों की है कसक निराली,
विरह विदित हर बहते पल में।
सौंप दिया है तन-मन अपना,
दिव्य पहर की मृदुल यामिनी।
बीते क्षण यादों की निधियाँ,
उर अंतस् बस प्रीति रागिनी॥
मेरी चाहत के मेघों ने,
घेरा नख- शिख मन अविचल में।
यादों की है कसक निराली,
विरह विदित हर बहते पल में।
भाव सजाकर धवल चंद्रिका,
धरती-अंबर जगमग तारे,
नेह नयन मोती झर जाएँ,
यादें झूमे पाँव पसारे।
प्रीति प्रणय की शुचित साधना,
उदित हुई इस नूतन पल में।
यादों की है कसक निराली,
विरह विदित हर बहते पल में।
विरह वेदना उठे ज्वार-सम,
मन मंदिर की तुम बस मूरत,
शीतलता मिलती है नूतन,
नेह सृजित देखूँ जब सूरत।
प्रीत बिखेरे, प्रीत बटोरे,
शामिल तू अब आज व कल में।
यादों की है कसक निराली,
विरह विदित हर बहते पल में।
@स्वरचित व मौलिक
शालिनी राय ‘डिम्पल’✍️