विरहा की तन्हा ये लम्बी रातें…..
यूँ ही ‘शुभम्’ कह देने भर से,
शुभ हो जाते जो दिन या रातें।
साँझ- सकारे बिन मौसम ही,
यूँ घिर-घिर न बरसतीं बरसातें।
किस बात का अहम करें हम ?
किस खूबी पर भाव दिखाएँ ?
रहम जो करती किस्मत हमपे,
हम भी करते प्यार की बातें।
हमारे भी अंगना चाँद उतरता।
भर- भर चाँदनी से नहलाता।
हमारे भी द्वारे चलकर आतीं,
सितारों जड़ी सजधज बारातें।
जोगन जैसा, जीवन है अपना।
पा जाते जीने-भर दानापानी ।
दामन न अपना खाली होता,
मिलतीं जो प्यार की सौगातें।
करती ताका-झाँकी हर पल।
खुश न एक पल रहने देती।
उंसियत जो होती नियति को,
करती न यूँ छुप-छुपकर घातें।
चकरघिन्नी-सा घुमाएँ मन को।
शान्त न तनिक भी रहने देतीं।
चैन-सुकून हर लेतीं दिल का,
विरहा की तन्हा ये लम्बी रातें।
-© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद
“सृजन सुगंध” से