विरहवेदना
‘चित चोर’ (मत्तगयंद सवैया छंद)
************************* श्याम सखा चित चोर लियो तुम
नैंनन नेह लगा दुख पाए।
भोर भई मन देखत का अब
माखन ,दूध, दही न सुहाए।
गोकुल, गोपिन, ग्वाल पुकारत
नंद किशोर कहाँ तुम धाए?
चैन चुराय लियो मुरली जब
कोकिल बैन नहीं कछु भाए।
लाल यशोमति बाट निहारत
गैयन दूध नहीं उतराए।
कूल तरंग प्रसंग सुनावत
देख घटा नभ में जब छाए।
यौवन प्रीति लुटाय कहे अब
मोहन आज रहे बिसराए।
कुंज खड़ीं सखियाँ झुलसावत
पावस की ऋतु आग लगाए।
मीन तजे निज प्राण बिना जल
ए विधि देह रही तड़पाए।
राह तकें खग वृंद सखा सब
द्वार पड़े छवि को ललचाए।
आन मिलो अब श्याम पिया तुम
मीत अहीर रही अकुलाए।
मोहनि मूरति साँवरि सूरत
ढूँढ़त-ढूँढ़त नैंन थकाए।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
महमूरगंज, वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर