विमोहा छंद (राम वनगमन)
राम वनगमन
विमोहा छंद
212 212
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धाम को छोड़के,राम जाने लगे।
ग्रामवासी सभी,साथ आने लगे।
भाग में जो लिखा,टालते ना बने ।
देख सीता सती,आँसुआते घने ।
और तो और ये,कौल कैसा भया।
सेज को त्याग के,भ्रात भी आ गया।
भोग सारे छिने,जोग में भी खिला।
संगिनी के हिया,में जरा ना गिला ।
नांहि बेचैन थी,दे रही वो विदा,
धन्य है उर्मिला।धन्य है उर्मिला।।
हो दुखी बज्र से,दृश्य ये देख ते,
आँसुओं की नदी सी बहाने लगे ।
धामको छोड़के,राम जाने लगे ।
रोकने ग्राम वासी,मनाने लगे ।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
30/11/22