विमुद्रिकरण
जिस मुद्रा के खातिर,
बदले थे तेवर हमने
आज उसीने छिन लिये
हमसे हि तेवर अपने,
भूल गये थे सब रिश्ते नाते
जग से था मुह मोड लिया
खत्म हुआ दमडी का गुरुर
जिसने था सब अन्ध किया,
ढुंढ रहे अब दुर तक रिश्ते
लगा रहे जुगत सब अपनी,
काला धन छिप जाय कैसे