#विभाजन_दिवस
#विभाजन_दिवस
■ काली रात, वही हालात
【प्रणय प्रभात】
किस तरह बसर बतलाओ काली रात करें?
आख़िर किस मुँह से आज़ादी की बात करें?
हम बदल कहाँ पाए हैं गुज़रे सालों में?
सब लगे हुए षड्यंत्रों में चालों में।
हल्के रिश्तों पर क्षुद्र सोच फिर भारी है।
चौदह अगस्त की रात विभाजनकारी है।।
भारत की धरती पर पग-पग
हर रोज़ महाभारत का रण।
कैकेयी की हठ के सम्मुख,
फिर नतमस्तक दशरथ का प्रण।
घर-घर में है इक कोप-भवन,
मानवता स्वर्ग सिधारी है।
चौदह अगस्त की रात विभाजनकारी है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)