*विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस प्रदर्शनी : एक अवलोकन*
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस प्रदर्शनी : एक अवलोकन
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आज दिनांक 14 अगस्त 2022 रविवार को सिविल लाइंस, रामपुर स्थित आदर्श धर्मशाला में “विभाजन विभीषिका स्मृति प्रदर्शनी” देखने का अवसर मिला।
जहॉं एक ओर 15 अगस्त का इस दृष्टि से महत्व है कि यह भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति का दिवस है, उल्लास और हर्ष की अनुभूति अपने आप में संजोए रहता है । वहीं दूसरी ओर 14 अगस्त वह पृष्ठभूमि है, जिसके रक्तरंजित पृष्ठों पर इस राष्ट्र की असीम वेदना अंकित है। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान का जन्म हुआ था और इसके साथ ही देश का विभाजन भी । एक करोड़ से अधिक भारतभक्तों को विभाजन की त्रासदी का शिकार होना पड़ा और यह सब उनके लिए सब कुछ खोकर शून्य में विचरण करने के समान दुख भरी स्थिति थी । सैकड़ों वर्षो से पीढ़ी-दर-पीढ़ी जो लोग भारत में रह रहे थे, अचानक उन्होंने देखा कि अब उनका शहर और गॉंव पाकिस्तान में परिवर्तित हो गया है। नवगठित पाकिस्तान में गैर-मुस्लिमों के लिए जान-माल और इज्जत सभी कुछ असुरक्षित था ।
धर्म के आधार पर विभाजन की इस विभीषिका को 75 साल पहले देशभक्त भारतीयों ने झेला था। इसी लोमहर्षक विभीषिका को चित्रों के द्वारा प्रदर्शनी में दर्शाया गया था । यह एक आवश्यक प्रदर्शनी थी, ताकि हम चेतनाबद्ध होकर एक जागरूक भारतीय के तौर पर व्यवहार करें, जिससे कि हमारा देश आगे कभी भी इस प्रकार से धर्म के आधार पर विभाजित न होने पाए ।
चित्रों में विभाजन के कारणों का तर्कपूर्ण विश्लेषण किया गया है । प्रदर्शनी जहॉं एक ओर अंग्रेजो के द्वारा भारत के विभाजन की शीघ्रता को उद्घाटित करती है, वहीं दूसरी ओर तत्कालीन भारतीय नेतृत्व द्वारा इस मामले में कोई प्रभावी निर्णय न ले पाने को भी इंगित कर रही है।
यह चित्र बताते हैं कि जनसंख्या के स्थानांतरण के प्रश्न को हवा में टाल दिया गया और कह दिया गया कि परिस्थितियॉं स्वयं अपना रास्ता खोज लेंगी। लेकिन स्थिति बिल्कुल सुस्पष्ट रही कि जनसंख्या के स्थानांतरण का प्रश्न एक भयावह विभीषिका में बदल गया । एक ऐसी समस्या में, जिसका कोई हल किसी के पास नहीं था ।
रेलवे के ऊपर विस्थापितों को पाकिस्तान से भारत लाने का एक बड़ा भार था। चित्रों में रेलगाड़ियों के डिब्बों में घुसे हुए लोग तथा छतों पर बेतरतीब भीड़ की तरह बैठे हुए अभागे भारतीयों की दुर्दशा का चित्रण किया गया है । यह सारे दृश्य बहुत ही मार्मिक हैं।
किसी चित्र में लोग सामान सिर पर लाद कर पैदल चल रहे हैं। कहीं अन्य वाहनों से जैसे-तैसे भागम भाग मची हुई है। कुल मिलाकर यह एक बदहवासी का चित्र है, जिसे प्रदर्शनी द्वारा काफी हद तक दर्शाने में आयोजकों को सफलता मिली है ।
प्रदर्शनी के एक चित्र में यह बिल्कुल सही कहा गया है कि जिन लोगों को पाकिस्तान छोड़कर भागना पड़ा, वह ऐसी अनजान जगहों पर जाकर शरण लेने के लिए विवश हुए जहॉं से परिवार-संस्कृति और भाषा के स्तर पर उनका कोई तालमेल अब तक नहीं था ।
प्रदर्शनी को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए कि उसने एक ऐसी त्रासदी की ओर देशवासियों का ध्यान आकृष्ट किया जो वस्तुतः मनुष्य निर्मित समस्या थी और जिस से जूझने के लिए देश के पास 1947 में कोई तैयारी नहीं थी ।
प्रदर्शनी की व्यवस्था भारतीय जनता पार्टी के जिला महामंत्री श्री अशोक विश्नोई पूरी मुस्तैदी के साथ निभा रहे हैं । उनके साथ वरिष्ठ नेता श्री दिनेश शर्मा जुड़े हुए हैं । श्री अशोक विश्नोई ने हमारा स्वागत किया, फोटो खींचे। तदुपरांत जब हम चलने को हुए, तभी विधायक राजबाला जी आ गईं। कुछ क्षण उनके साथ बिताने का अवसर मिला । जैसे ही राजबाला जी का प्रस्थान हुआ, तभी यह सूचना मिली कि उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री श्री बलदेव औलख प्रदर्शनी में पधारने वाले हैं। अशोक विश्नोई जी से हमारी आत्मीयता हो चुकी थी । उन्होंने आग्रह किया- “रुकिए” । इसका लाभ यह हुआ कि हमें प्रदर्शनी के द्वार पर श्री बलदेव औलख का स्वागत करने का अवसर भी मिला ।
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लेखक :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451