विभाजन की पीड़ा
अपनी चल अचल संपत्ति छोड़कर,
अपने पुराने मित्र ,पड़ोसी छोड़कर ,
अपने बंधु बांधवों ,रिश्तेदारों से बिछड़कर,
अपना बचपन ,जवानी की सुहानी यादों से ,
नाता तोड़कर ,
चले तो आए स्वदेश दो टूक कलेजा,
आंखों में आसू भरकर,
मगर नहीं भूलती वोह देश के विभाजन की पीड़ा,
वोह तड़प , वो कसक, वो संताप ,
और अनगिनित कष्ट ,अत्याचार ,,
अपनों के खोने का गम ।
जब भी आता है गणतंत्र दिवस ,
याद आती है इससे जुड़ी हर पीड़ा ।
किस कीमत पर मिली हमें आजादी ,
क्या हासिल हुआ हमें क्या खोकर ?
विभाजन विभीषिका का दर्द रह गया ,
दिल में उम्र भर के लिए दबकर ।