विपरीत हवा यह कैसी चली —- कविता
***विपरीत हवा यह कैसी चली***
चल रही थी अच्छे से जिंदगानी,
जीवन सबका अपनी कहानी।
वक़्त ने कैसी करवट बदली,
विपरीत हवा यह कैसी चली।।
जिधर भी देखो एक ही स्वर है।
कैसी यह महामारी ईश्वर है।।
जबां जबां पर इस वक़्त तो,
बात रोग की दिन रात चली।
विपरीत हवा यह कैसी चली।।
काल रूप यह कैसा आया।
असमय मृत्यु वरण करे।
अपने अपने ईष्ट को पूजे।
शीश उन्हीं के चरण धरे।।
अखियां पथरा रही देखकर,
खिलती जवानी शमशान जली।।
विपरीत हवा यह कैसी चली।।
सबकी रक्षा करना विधाता।
तू ही जीवन दाता है।
हम क्या जाने,तुम्हे ही माने।
प्राणनाथ ओ परमात्मा।।
बन्द हो जाए यह खलबली।।
विपरीत हवा यह कैसी चली।।
राजेश व्यास अनुनय