विनोद सिल्ला के दोहे
रोटी
रोटी तू भी गजब है, कर दे काला चाम।
देश छोड़ के हैं गए, छूटे आँगन धाम।।
रोटी तूने कर दिए, घर से बेघर लोग।
रोटी मात्र इलाज है, रोटी ही है रोग।।
रोटी तेरे ही लिए , बेलें पापड़ रोज।
मोहताज तेरे सभी , तेरी ही नित खोज।।
रोटी सबसे है बड़ी, इससे बड़ा न कोय।
रोटी बिन बेचैन सब, कैसे पोषण होय।।
बड़ा धर्म रोटी बना , रोटी की है चाह।
जीवन भागम-भाग है, रोटी की परवाह।।
सता रही रोटी सदा, कर के बारा बाट।
घर बाहर तक लुट गया, विसरे सारे ठाट।।
“सिल्ला” घर को छोड़ते, रोटी हित निज गाँव।
टोहाना ने दी मुझे, आश्रय रूपी छांव।।
-विनोद सिल्ला©