विनोद सिल्ला का साहित्यिक सफरनामा
विनोद सिल्ला का साहित्यिक सफरनामा
मेरा (विनोद सिल्ला का) जन्म हरियाणा राज्य के हिसार जिले के उपमंडल हांसी के ऐतिहासिक गांव भाटोल जाटान में, एक गरीब मेहनतकश परिवार में दादा मान्य. माणक राम व पिता मान्य. उमेद सिंह के कच्चे घर में 24 मई 1977 को माता संतरो देवी की कोख से हुआ। मैं पांच बहन-भाइयों में दूसरे क्रम में हूँ। दादी को देखने का सौभाग्य हमें नहीं मिला। मेरी दादी का देहांत, मेरे पिता जी के विवाह से पूर्व ही हो गया था। मैं पांचों बहन-भाइयों में, दादा जी को सबसे अधिक प्रिय था। बचपन का मेरा अधिकतर समय दादा जी के सानिध्य में व्यतीत हुआ। दादा जी मुझे तरह-तरह की कहानियां, गीत, कविता, लोकोक्ति, कहावतें सुनाते थे। मेरा मानना है कि मेरा साहित्य से जुड़ाव यहीं से हुआ। छात्र जीवन में कहानियों की पुस्तकें पढ़ता था। जब तक सभी कहानियां नहीं पढ़ लेता था। तब तक पुस्तक को छोड़ने का नाम नहीं लेता था। दीवानगी की हद तक पढ़ता था। कॉमिक्स भी खूब पढ़े। कॉलेज के दौरान, कॉलेज के समृद्ध पुस्तकालय से पुस्तक ले-ले कर खूब पढ़ी। इस दौरान साहित्य के प्रति रूचि और अधिक बलवती हुई। प्राथमिक शिक्षक बनने के लिए डी. एड. (Diploma in education) में प्रवेश ले लिया, कॉलेज शिक्षा बीच में ही छोड़नी पड़ी। इस दौरान साहित्य के साथ-साथ सांस्कृतिक गतिविधियों मे भी रूचि हो गई। नाटक, गीत व अन्य गतिविधियों में मेरी सहभागिता अवश्य ही होती थी। इस प्रकार मेरी साहित्य व उसकी विभिन्न विधाओं से सरोकार बना रहा। जो मुझे साहित्यकार बनाने में सहायक रहा। मेरे पिता जी भी लिखते हैं। वे सामाजिक सरोकार के गीत लिखते हैं। उनके लेखन ने भी मुझे प्रेरित किया। यूं भी कह सकते हैं कि लेखन मुझे दादा जी, पिता जी से संस्कारों मे मिला।
मैं फरवरी 1999 में बतौर प्राथमिक शिक्षक (सिंगल टीचर स्कूल) एकल शिक्षक विद्यालय में नियुक्त हुआ। मेरी नियुक्ति पैतृक गांव से लगभग सौ किलोमीटर दूर, फतेहाबाद जिले के टोहाना उपमंडल में हुई। मैंने अपना निवास स्थान विद्यालय को ही बना लिया। विद्यालय की छुट्टी से पूर्व व छुट्टी के बाद, कोई साथी संगी नहीं था। अपने एकाकीपन को काटने के लिए, मैंने लेखन चुना। मैं विशेष अवसर के लिए तुकबंदी कर के सुनाता, जिसे साथी-संगियों द्वारा खूब सराहा जाता। कितने ही अध्यापकों की सेवानिवृत्ति के आयोजन में मैंने अपनी तुकबंदी सुनाकर वाह-वाही लूटी। इन तुकबंदियों ने अपनी कर्मस्थली पर (टोहाना में) मुझे अत्यधिक ख्याति दिलाई। सेवानिवृत्त होने वाले अध्यापक, सेवानिवृत्ति से पूर्व अपना बायोडाटा मुझे भेजते थे। आयोजन में आमंत्रित करते। कविता लिखने का आग्रह करते। इस तरह की तुकबंदी के अतिरिक्त सामाजिक मुद्दों पर भी लिखने लगा। इस को लेकर, मैं आश्वस्त नहीं था कि जो लिख रहा हूँ, ये कविता हैं या नहीं। तदुपरांत मेरा संपर्क साहित्यकार सरदार बलवंत सिंह मान से हुआ। मैंने उनकी कविता सुनी। मुझे ज्ञात हुआ कि शहर में ओर भी लोग हैं मेरे जैसे। जो लिखते हैं। उसके बाद आई. जी. कॉलेज टोहाना के प्राचार्य डॉ. विकास आनंद से किसी आयोजन में संपर्क हुआ। जब उन्हें पता चला कि मैं भी कुछ लिख लेता हूँ। तो उन्होंने मुझे समय-समय पर शहर में होने वाली साहित्यिक गोष्ठियों में शामिल होने के लिए बोला। मैं साहित्यिक गोष्ठियों में शामिल होने लगा। लेखन से संबंध और अधिक गहरा होता गया। मैं लिखता रहा। दूसरे साहित्यकार कविता संग्रह प्रकाशित करवाने बारे बार-बार कहते। लेकिन मैं संकोच कर रहा था। सभी साथियों के कहने पर मैंने अपनी पांडुलिपि प्रकाशित करवाने के लिए तैयार की। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रूप देवगुण के पास भूमिका लिखने का आग्रह लेकर गए। उन्होने हमारा आग्रह स्वीकार कर लिया। मैंने उन से पूछा, डॉ. साहब यह कविता हैं भी या नहीं। उन्होंने कहा कि क्यों नहीं हैं कविता। अच्छा लिखा है आपने। डॉ रूप देवगुण के इन शब्दों ने मुझे बेहद प्रेरित किया। इस प्रकार मेरा प्रथम कविता संग्रह आस्तित्व में आ पाया।
मैं लिख तो 1999 से रहा हूँ। परन्तु मेरा प्रथम काव्यसंग्रह ‘जाने कब होएगी भोर’ सन 2013 में प्रकाशित हुआ। जिसके विमोचन समारोह में 17 फरवरी 2013 को वरिष्ठ साहित्यकार डा० रूप देवगुण बतौर मुख्य अतिथि टोहाना पहुंचे। उनके साथ साहित्यकार सत्यप्रकाश भारद्वाज भी पधारे। जिन्होंने उपस्थित साहित्यकारों व साहित्य प्रेमियों से आह्वान किया कि टोहाना में हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शाखा का गठन किया जाए। इसके उपरांत 24 फरवरी 2013 को हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन की टोहाना शाखा का गठन किया गया। जिसमें मुझ (विनोद सिल्ला) को अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
मेरा दूसरा काव्यसंग्रह ‘खो गया है आदमी’ सन 2014 में प्रकाशित हुआ। जिसका विमोचन 13 अप्रैल 2014 को भारत रत्न डा० भीम राव अम्बेडकर जयन्ती की पूर्व संध्या पर संपन्न हुआ। इस अवसर पर जनवादी लेखक संघ के प्रदेश महासचिव मास्टर रोहतास ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। 11 जनवरी 2015 को मेरे द्वारा संपादित संकलन ‘प्रकृति के शब्द शिल्पी : रूप देवगुण’ का विमोचन हुआ। यह संकलन डा० रूप देवगुण, डा० शील कौशिक, प्रौफसर अमृतलाल मदान व कमलेश शर्मा जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों की प्रसंशा का पात्र बना।
दिनांक 26 जुलाई 2015 को मेरे तीसरे काव्यसंग्रह ‘मैं पीड़ा हूँ’ का विमोचन हुआ। समारोह में डा० रूप देवगुण ने बतौर मुख्य अतिथि व प्रौफेसर अमृतलाल मदान ने बतौर मुख्य वक्ता शिरकत की। इस अवसर पर साहित्यकार सत्यप्रकाश भारद्वाज विशिष्ट अतिथि थे। 31 जुलाई 2017 को जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित मुंशी प्रेमचंद के जन्मोत्सव पर गांव राजली, हिसार में आयोजन में मेरे चौथे काव्य-संग्रह “यह कैसा सूर्योदय” का विमोचन प्रख्यात लेखक कमलेश भारतीय, उपन्यास मास्टर रोहतास, सुशीला बहबलपुर, सरदानंद राजली, ऋषिकेश राजली के हाथों हुआ।
दिनांक 31 जुलाई 2018 मेरे द्वारा संपादित काव्य संग्रह “दुखिया का दुख” का विमोचन हुआ। जिस आयोजन की अध्यक्षता साहित्कार प्राचार्य डॉ. विकास आनंद ने की तथा मुख्य अतिथि साहित्यकार मनोज पवार ने शिरकत की।
मेरा कविता संग्रह “छुअन” 24 दिसंबर 2019 को विमोचन हुआ। जिस आयोजन की अध्यक्षता साहित्कार प्राचार्य डॉ. विकास आनंद ने की तथा मुख्य वक्ता साहित्यकार डॉ तेजिन्द्र ने शिरकत की। इसके बाद वर्ष 2020 पूरा व 2021 आधा कोरोना की भेंट चढ़ चुके हैं। मेरा एक लघुकविता संग्रह “कितना सुखद तेरा आना” व एक कविता संग्रह “प्रश्न चिह्न” व लघुकथा संग्रह “जिंदा होने का प्रमाण” विमोचन की बाट जोह रहे हैं। मैं विमोचन के लिए उपयुक्त समय की बाट जोह रहा हूँ। दर्जन भर कहानियां, एक सौ लघुकथाएं, संस्मरण, दो संग्रह की कविताताएं प्रकाशित होने की बाट जोह रही हैं।
सन 2011 में डॉ. पी. वी. सिंह के माध्यम से जनवादी लेखक संघ के सरदानंद राजली से मुलाकात हुई। उसके बाद मैं उनको अपने आयोजन में आमंत्रित करने लगा, वे मुझे अपने आयोजन में आमंत्रित करने लगे। उन्होंने मुझे जनवादी लेखक संघ से जोड़ा। जनवादी लेखक संघ की बहुत सी गोष्ठियों कार्यशालाओं मे शामिल हुआ। उसके बाद जनवादी लेखक संघ का जिलाध्यक्ष नियुक्त कर दिया। राज्य अधिवेशन हुआ तो राज्य उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया। फरवरी 2014 में इलाहाबाद में जनवादी लेखक संघ का अधिवेशन हुआ। जिसमें 35 लेखक/लेखिकाएं इलाहाबाद पहुँचे। जिसमें गोहर रजा, सुभाषित सहगल सहित बहुत से कलाकारों से रुबरु होने का अवसर मिला। इस दौरान मोतीलाल नेहरु व जवाहरलाल नेहरु के निवास स्थान देखे। अमर शहीद क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद का शहादत स्थल देख कर गौरवान्वित हुए। संगम स्थल प्रयागराज गए, संगम स्थल के नजदीक अकबर का किला देखा। इलाहाबाद से गाड़ी हायर करके पूरी टीम साहित्यकारों का तीर्थ लम्ही जाकर, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद के निवास स्थान देखा। लम्ही से हम अत्यधिक ऊर्जा लेकर आए। जिस दिन 14फरवरी 2014 को सांयकाल में हमारी वापसी थी। दिन का समय आराम करके थकावट उतारने के लिए था। लेकिन मैंने सरदानंद, कुलदीप राजली व सतीश सुंडावास ने इलाहाबाद शहर घूमने का मन बनाया। हम घूमते-घूमते एक स्थान पर पहुंचे। महान कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला की प्रतिमा देखी। आस-पास रेहड़ी वालों से हमने सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के बारे में पूछा। उन्होंने बताया इनके वंशज नजदीक ही रहते हैं। हम उनसे रास्ता पूछ कर गये। एक साधारण सा घर था, जिस पर निराला भवन लिखा था। दरवाजा खटखटाया तो हमारा स्वागत निराला जी के पड़पौत्र अविनाश निराला ने हमारा स्वागत किया। हम उनके साथ बैठे रहे, निराला जी के जीवन के बारे में, लेखन के बारे में चर्चा की। बातों-बातों में उन्होंने बताया कि पड़ोस में ही विख्यात कलमकार कवि जगदीश गुप्त का भी निवास स्थान है। वहां भी जा सकते हो। हम उन से विदा लेकर मान्य. जगदीश गुप्त जी के निवास स्थान पर गये। जहां पर मान्य. जगदीश गुप्त के बेटे स्वास्तिक गुप्त ने हमारा स्वागत किया। उनके निजी पुस्तकालय का अवलोकन किया। वहां से विदा होकर हम कवयित्री महादेवी वर्मा के निवास स्थान के बार में पूछते रहे। कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली। बाजार में खरीददारी करने के उपरांत बाकी साथियों से जा मिले। बाकियों से अपने अनुभव सांझे किए तो उन्होंने अपने विश्राम करने निर्णय पर पश्चाताप किया।
इसके बाद जनवादी लेखक संघ के अगले अधिवेशन में झारखण्ड के धनबाद में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। धनबाद को भारत की कोयला राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। धनबाद में कोयला खानों में कार्यरत आदिवासी मजदूरों की दुर्दशा देखकर दिल द्रवित हुआ। उनको नाम मात्र पारिश्रमिक दिया जा रहा है। इप्टा जन नाट्य मंच की प्रस्तुतियों ने आदिवासियों की पीड़ा उकेरी। रंगकर्मी निसार अली व उनकी टीम रुबरु होने का अवसर मिला। आदिवासियों के जीवन यापन व समस्याओं का अवलोकन करने का अवसर प्राप्त हुआ। जनवादी लेखक संघ के माध्यम से समय-समय पर कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है। जिसके माध्यम से नवोदित लेखकों को शामिल करके उनका मार्गदर्शन किया जाता है।
हम अपने क्षेत्र में हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन के बैनर के नीचे मासिक गोष्ठियों का आयोजन करके साहित्यिक गतिविधियों अनवरत चला रहे हैं। जिनमें स्थानीय रचनाकारों को स्थापित साहित्यकारों से रुबरु करने के उद्देश्य से आमंत्रित करते हैं। हिन्दी साहित्य सम्मेलन का 2011 से 2015 तक अध्यक्ष रहा। 2015 से 2018 तक मुख्य सलाहकार रहा। 2018 से अब तक कोषाध्यक्ष हूँ।
डॉ. अंबेडकर स्टूडेंट्स फ्रंट ऑफ इंडिया ने गुरु जम्भेश्वर विश्व विद्यालय, हिसार के चौधरी रणवीर हुड्डा ऑडिटोरियम में भव्य आयोजन करके राष्ट्रीय अधिवेशन किया। जिसमें मुझे भी कविता पाठ करने का अवसर प्राप्त हुआ।
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में प्रोफेसर डॉ. सुभाष हर वर्ष फरवरी महीने में कुरुक्षेत्र में “सृजन उत्सव” नाम से भव्य साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते थे। जिसमें साहित्य मनीषी, संपादक, प्रकाशक व चिंतन मनन करने वाले इकट्ठे होते थे। कोरोना काल से पूर्व यह आयोजन फरवरी 2019 में, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आर. के. ऑडिटोरियम अंतिम बार आयोजित हुआ। जिसमें मैं भी शामिल हुआ। मुझे कविता पाठ करने का अवसर भी प्राप्त हुआ।
मेरी कुछ रचनाओं पर विवाद भी हुआ। जिनमें से एक “मनचला युवा पत्रकार” शीर्षक से कविता है। जिसके माध्यम से शहर के कुछ भ्रष्ट पत्रकारों की पोल खोलने का कार्य किया। जिससे संबंधित पत्रकार पूरी तरह तिलमिला कर रह गये। उन्होंने प्रैस क्लब (पत्रकारों का समूह) में मेरे सामाजिक बहिष्कार की बात रखी। जिसे बाकी पत्रकारों ने सिरे से नकार दिया। कहने लगे आपके समाचार पत्र, सोशल मीडिया के युग में विनोद सिल्ला का क्या कर लोगे। उसकी अभिव्यक्ति को कैसे रोक पाओगे। एक वरिष्ट पत्रकार ने उनसे कहा कि मामला खत्म करके लेखक से अनुरोध करो कि भविष्य में ऐसा लेखन न करे। लम्बे समय तक तीन पत्रकारों ने मेरा अघोषित बहिष्कार करे रखा। बाकी सहयोगी बने रहे।
इनके अतिरिक्त प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं प्रणाम पर्यटन, देस हरियाणा, शब्द सरोकार, आधुनिक साहित्य, पूर्ण विचार, क्रांति आह्वान, छपते-छपते, सर्व भाषा ट्रस्ट, शिक्षा सारथी, अभिनव, हरिगंधा, स्वाधीनता, दलित दस्तक, बहुजन कल्याण, दैनिक ट्रिब्यून, दैनिक जागरण, टोहाना मेल, टोहाना दर्पण, सहित अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी मेरी रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। संपादकों द्वारा अनेक संकलनों में भी मेरी रचनाएं शामिल की गई।
सम्मान
1. डॉ. भीम राव अम्बेडकर राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2011 (भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा)
2. लॉर्ड बुद्धा राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2012 (भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा)
3. उपमंडल अधिकारी (ना) द्वारा 26 जनवरी 2012 को
4. दैनिक सांध्य समाचार-पत्र “टोहाना मेल” द्वारा 17 जून 2012 को ‘टोहाना सम्मान” से नवाजा
5. ज्योति बा फुले राष्ट्रीय फैलोशिप अवार्ड 2013 (भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा)
6. ऑल इंडिया समता सैनिक दल द्वारा 14-15 जून 2014 को ऊना (हिमाचल प्रदेश में)
7. अम्बेडकरवादी लेखक संघ द्वारा कैथल में (14 जुलाई 2014)
8. लाला कली राम स्मृति साहित्य सम्मान 2015 (साहित्य सभा, कैथल द्वारा)
9. दिव्यतूलिका साहित्य सम्मान-2017
10. प्रजातंत्र का स्तंभ गौरव सम्मान 2018 (प्रजातंत्र का स्तंभ पत्रिका द्वारा) 15 जुलाई 2018 को राजस्थान दौसा में
11. अमर उजाला समाचार-पत्र द्वारा ‘रक्तदान के क्षेत्र में’ जून 2018 को
12. डॉ. अम्बेडकर स्टुडैंट फ्रंट ऑफ इंडिया द्वारा साहब कांसीराम राष्ट्रीय सम्मान-2018
13. एच. डी. एफ. सी. बैंक ने रक्तदान के क्षेत्र में प्रशस्ति पत्र दिया, 28, नवंबर 2018
14. ज्ञानोदय साहित्य सम्मान-2020, ज्ञानोदय साहित्य संस्था, कर्नाटक द्वारा 15 जून 2020
इनके अतिरिक्त और भी अनेक सामाजिक व साहित्यिक संस्थाओं ने समय-समय सम्मानित किया।
पता :-
विनोद सिल्ला
मकान नं. 771/14
गीता कॉलोनी, नजदीक धर्मशाला
डांगरा रोड़, टोहाना
जिला फतेहाबाद (हरियाणा)
पिन कोड-125120
संपर्क 09728398500, 098131980
ई-मेल vkshilla@gmail.com