विनाश की जड़ ‘क्रोध’ ।
बिन बादलो के जब भी बरसात हुई,
समझो वो क्रोध का प्रहार हुआ,
बिन सूर्य के मस्तिष्क में गर्मी का ताप चढे़,
समझो वो क्रोध की आग हुई,
बिन प्रलय के नदी में उफान उठे,
समझो वो क्रोध के सब्र का बाँध टूटे,
बिन समझ के असमय जो ज्वलामुखी फटे,
समझो वो क्रोध का विस्फोट हुआ,
बिन कहे कोई अडिग पहाड़ रूठे,
समझो वो क्रोध पर काबू छूटे ।
ऐसी चिंगारी जो तनिक में न बुझे,
समूल विनाश की जड़ क्रोध में ही दिखें।
✍🏼रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर ।