विनती
कल जोड़ प्रथम नमन तुमको करते आदि शक्ति।
संसार का मूल आधार है तू और तुझसे ही नियति।
स्वच्छ कर मन करे यज्ञाहुति में तुमको अर्पण।
पावन अग्नि में निर्मल करे हृदय का अंग अंग।
तुम आदि, तुम ही अनादि।
तुम शून्य, तुम ही शिखर।
तुम शाश्वत, तुम ही अचल।
तुम धरा, तुम ही अम्बर।
पात्र भी तुम ही, तुम ही जल।
चेतन भी तुम ही, तुम ही जड़।
शांत भी तुम ही, तुम ही विभ्रांत।
तप भी तुम ही, तुम ही वरदान।
सत्य तुमसे, तुमसे ही कल्पित।
व्यथा में तुम, तुम ही प्रमुदित।
शेष भी तुम, अवशेष भी तुम।
तिलक भी तुम, कलंक भी तुम।
तुम ही श्वास, तुम ही अंत।
तुम ही इति, तुम ही अनंत।
तुमसे पतित, तुमसे ही पावन।
तुमसे राम, तुमसे ही रावण।
अतीत की स्मृति तुम, भविष्य की व्यग्रता तुम।
उम्मीद की द्युति तुम, त्रास का अंधकार तुम।
पाप भी तुम, तुम ही पुण्य ग्रंथ के छंद।
जीवन का सार तुम, तुम ही मृत्यु का तांडव।
वंदना है तुझसे कि मेरी आत्मा को बल दे।
मेरी कलम को शक्ति, अक्षर को तल दे।
जो हो चूक, अज्ञान समझ क्षमा दान दे।
आशीष अपना बना, ज्ञान का प्रसाद दे।