विनती सुनलो कृष्ण मुरारी
विनती सुन लो कृष्ण मुरारी,
विनती सुन लो कृष्ण मुरारी,
रघुबर, अबधबिहारी,
जप पूजन को मैं क्या जानूँ,
निजी स्वार्थ को ही पहिचानूं l
नाता केवल भरम जाल से,
समझ न आये, किसकी मानूँ l
अब तो उमर बीत गई सारी,
आया शरण तिहारी l
भौतिक जग से केवल नाता,
विषय वासना में सुख पाता l
सतसंगों से दूर रहा मैं,
अपने को ही समझा ज्ञाता l
मानो, भूल हुई है भारी,
क्षमा करो त्रिपुरारी l
कैसे शेष उमर कट पाये,
भक्ति भावना उर बस जाए l
साथी सम्बन्धी सब झूठे,
हम घमण्ड में थे भरमाये l
भूलो, गोबर्धन गिरिधारी,
महिमा अदभुत न्यारी l
विनती सुन लो कृष्ण मुरारी,
रघुबर अबध बिहारी l