विध्वंस का शैतान
एक एक कर तोड़ रहे
वो प्रचलित संस्थान
उनके मानस में पैठा
है विध्वंस का शैतान
जनहित के नाम पर वो
कर रहे हैं खूब मनमानी
महंगाई वृद्धि,बेकारी का
कारण उनकी कारस्तानी
हर उपलब्धि का श्रेय वो
अपने पाले में रहे समेट
पूर्व प्रचलित कई संस्थानों
को कर दिया है मटियामेट
योजनाओं के नाम पर हर
साल हुए बस थोथे ऐलान
उपभोक्ता बनकर रह गया
बस अब समूचा हिंदुस्तान
डालर की तुलना में हो गया
क्यों रुपया इतना कमजोर
इस सवाल का उत्तर देने की
बजाय वो लेते हैं मुंह मोड़
साल दर साल बढ़ा विदेशी
व्यापार असंतुलन का ग्राफ
फिर भी सत्तानशीनों के मुख
पर नहीं कहीं चिंता का भाव
हे ईश्वर मेरे देश के लोगों को
देना समयानुकूल बुद्धि विवेक
आने वाले समय में वो उन्हें चुनें
जो दूर करे जन मन के सब क्लेश