विधुर बाप
विधुर बाप
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विधुर बाप निर्बल ,असहाय
बेचारा सा होता है
है अगर छोटी -छोटी गुडियाँ तो
किस्मत का मारा होता है
है अबोध ,अनजान शिशु तो
माँ जैसा ही दुलारा होता है
शीतल , सौम्य ,स्नेहदायिनी
दुग्ध की पावन धारा होता है
बड़ी -बडी बेटियों के लिए तो
मर्यादा का रखवाला होता है
पथ भटके जब जवां लाडलियाँ
तो सही राह दिख लाने वाला होता है
हो जाये विधुर यदि यौवनावस्था में
तो टूटे हुए तारे सा होता है
कामेच्छाओं के सरोवर में बिना
पानी के मछली जैसा होता है
हो जाये विधुर चालीस के पार तो
कोई बात न करने वाला होता है
आवश्यकताओं की पूर्ति न होने पर
सागर में रेगिस्तान जैसा होता है
निःसहाय विधुर बहू बेटे के राज्य में
भँवर में पतवार खेने वाला होता है
दैनिक आपूर्ति के लिए तरसता
केवल ऊँपर वाला ही सहारा होता है
विधुरों जैसी हालत आज मेरे बुजुर्गों की
बहूँ बेटे के होते भी दर दर भटकते है
आज के बहूँ बेटे ले लो सबक
तुमको भी बुजुर्ग होना है
डॉ मधु त्रिवेदी