विधा मित्रता
मित्रता पे संदेह किया सुदामा ने।
द्वारिका नंगे पाँव आये थे।
दीनता फिर भी न गयी
अंतर्यामी से चने छुपाये थे।।.
पड़े पाँव में छाले थे।
अश्रुओं से पग धोये थे।
स्वागत देख मन ललचाया
हाथ से पग पोछे थे।।.
त्रिलोक स्वामी जिंन्हे कहते थे।
चलते जाये मनमा कहते थे।
गले लगे मुस्कराकर विदा किया
पत्नी को कोंसतें चलते थे।।.
सज्जो चतुर्वेदी….शाहजहाँपुर