विधा – कविता
हर परिस्थितियां में संयम आत्मविश्वास से जीना,
ये मत कहना गात का पट सा पहना मांगे झीना|
जीवन आशाओं-निराशाओ की चलती सी राह रहना,
उसमे खुद को खोकर अपना भी न दे पाया विछौना|
कभी तो पास खड़े रिश्तें कभी अकेले असहाय होना
अपने साहस के बलबूते तूने करने अधूरे कारज जीना|
रात के अँधेरे में ख़ुशी भरे मेले में अपना तलाश सी
यही भर ज़ज्वात मीठे वाणी ले माना मधुमय गिना|
इंसान जग में अकेले आता , अकेले ही जाता खाली हाथ
यहीं पुरे कर कारज परिस्थति अपना निशान काज़ छिना|
”मैत्री” जीवन को संघर्ष से जोड़ यही सब मानव का गहना
हर जटिल भी सुगम हो जाता घिस कर बनता साफ नगीना
स्वरचित –रेखा मोहन २५/२/२3 पंजाब