विधाता
दुनिया के इस रंग मंच
का निर्देशक है विधाता
उसकी मर्जी से ही हरेक
शय अपना रोल निभाता
उसकी इच्छा से निर्मित हुए
इस ब्रह्मांड के सभी सितारे
दिन और रात की खातिर दे
दिए उसने सूर्य.चांद औ तारे
जल.जमीन और वायु का
हर जीव को दिया उपहार
विविध किस्म की फसलें रच
दिया सबको भरपूर आहार
जंगल. पर्वत और सागर को
सृजित कर दीं संपदाएं प्रचुर
आवश्यकताओं की पूर्ति का
भाव भी भरा हरेक में भरपूर
मगर नहीं दिया किसी को भी
मनमानी करने का अधिकार
ताकि चलता रहे समूचे जग में
आवाजाही का क्रम लगातार
दुनियाभर भले कोई खुद को
समझे सबसे बड़ा शक्तिमान
मगर वह कभी तोड़ नहीं सकता
विधाता का रचा हुआ विधान
जैसे ही हो जाती है किसी भी
किरदार की भूमिका समाप्त
औरों का हाथ और साथ छुड़ा
देता विधाता यूं ही अकस्मात