विधाता का लेख
ईश्वर ने जब लिख दिया,
जीवन का हर रोल।
मानव कठपुतली बन कर,
खेल रहा हर खेल ।
जिसने दिया उसी को ,
भूल गया इन्सान।
खुद ही अपने आप को ,
लगा समझने भगवान।।
ऐसा घेरा लोभ ने,
कुछ भी नहीं सुहाय।
क्या अच्छा है क्या है बुरा
उसको समझ न आय
कोई बदल नहीं सकता,
उसका लिखा लेख।
चाहें जितना जतन करो,
मिटे लिखा नहीं तकदीर।
ईश्वर ने जब खींची माथे की लकीर।
मेहनत को ऊपर लिखा ,बाकी सब मारिची ।।
मेहनत से ही पूरा होता, जीवन का हर लक्ष्य
हरि नाम में मन लगाओ जीवन हो जाएगा धन्य ।
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ