विधा:कविता शीर्षक: देश के लाल
लाल आप देश के सच्चे सपूत हो,
कर्मठ, निष्ठावंत देश प्रेमि लाल हो।
कद से छोटे, पर धैर्य से थे बलवान,
हमेशा सचेत रखते थे, देश का स्वाभिमान।
कितना साहसी बालक था,
बचपन में ही नदी पार करना जानता था।
किसी के सामने हाथ फैलाना पसंद नहीं था,
मित्रों के साथ जाकर किसान को बिना पूछे आम तोड़े थे।
उसी किसान की बात मानकर जीवन सुधारे थे,
देश जब मुसीबत में था, तब देश के प्रधानमंत्री थे।
देश में जब अनाज की कमी हुई,
हफ्ते में एक वक्त का खाना छोड़ने की पुकार लगाई ।
श्वेत क्रांति, हरित क्रांति का आह्वान किया,
जय जवान जय किसान का नारा दिया।
अपने शादी में दहेज न लेकर खादी कपड़े और चरखा लिए,
पुराना कोट पहनकर ताशकंद तक गए ।
पुराने कोर्ट में भी देश के नए सपने थे,
वह बलशाली वीर धीर देश के लाल थे।
विश्व शांति का दूत बनकर ताशकंद गए, हस्ताक्षर कर के सदा के लिए जगमगाते सितारा बन गए।
कवि: श्री रमेश मालचिमणे, अध्यापक
श्री वर्धमान हिंदी हाईस्कूल रायचूर
कर्नाटक मो.9900900962