विद्रोही मन
छांव में जब आये पसीना,
स्नेह मैं होने लगे घुटन।
जब प्रेम गीत कर्कश लगें,
बात बात मैं हो अनबन।
जब इत्र तुम्हे बदवू लगे,
फूलों से छिलने लगे वदन।
दूरियों को जब बढ़ाने लगे,
हृदय से किया हुआ आलिंगन।
मेरा सुझाव तुम्हे एहि प्रिय,
फिर मत करना ओर सेहन।
मत कुचलो अंदर अंदर,
हो जाने दो विद्रोही मन।
रचनाकार:- जितेंन्द्र दीक्षित,
पडाव मंदिर साईंखेड़ा।