विद्यापति धाम
हे आदिकवि विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम,
कविवर की निर्वाण भूमि यह,
रज-रज में यहाँ शान्ति व्याप्त है,
कण-कण में यहाँ साक्षात् शिव हैं,
यह योगभूमि विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम।
माता गंगा के धर्मपुत्र कवि,
अंत समय मिलने को आए,
अचल हुए जब इसी भूमि पर,
अविरल माँ आई इस धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम।
महादेव के अनन्य भक्त कवि,
‘उगना’ बन शिव ने की चाकरी,
गंगा में जब समाधिस्थ हुए कवि,
प्रकट हुए ‘हर’ विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्-शत् प्रणाम।
उगना-महादेव रूप प्रतिष्ठित,
महिमा उनकी है चहुँओर,
भक्त जनों के हृदय विराजित,
यह पुण्य भूमि विद्यापति धाम,
स्वीकार करो शत्- शत् प्रणाम।
मौलिक व स्वरचित
डॉ. श्री रमण ‘श्रीपद्’
बेगूसराय (बिहार)