विदा पल कहूं कैसे, बिटिया आती रहना
कैसे मैं कह दूं, बेटी है परायी,
बड़ी मन्नतों से परी सी है आई!!
बेटी है तो घर में, रंगोली है सजती,
बेटी है पायल, रूनझुन सी बजती!!
मोती है,माला है, गुड्डे हैं, गुड़िया है,
बेटी मेरी जैसे जादू की पुड़िया है!!
हाथी है, घोड़े हैं, घर भर खिलौने हैं,
खुशियां बड़ी, दुःख लगते बौने हैं!!
गइया को रोटी, चिड़ियों को दाने,
होता है अन्न दान, उसी के बहाने!!
आती जब राखी, सजाती है थाली,
रखती बाती दियों मेें, हर एक दीवाली!!
खुशियों की अनगिनत पुड़िया है,
मेरी राजदुलारी, रानी गुड़िया है!!
होली में मां के संग, गुझिया बनाती
तृतीया को गुड़ियों की, शादी रचाती!!
उड़ती जो फूर फूर, आंगन की तितली है,
टुक टुक निहारे जो, आंखों की पुतली है!!
चुड़ियां है, बाली है, काजल है, बिंदिया है,
लोरी माँ की, सलोना सपना है, निंदिया है!!
बिटिया मेरी अब बड़ी हो रही है,
यह सोच मां अब खडी़ रो रही है!!
है जो मेरे घर की लाज, हीरों का गहना,
विदा पल कहूं कैसे, बिटिया आती रहना!!
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”
बिलासपुर, छत्तीसगढ़