“विदाई”
एक जन्म से विदा होकर
मानव माँ के कोख में आता है,
माँ का कोख छोड़
फिर दुनिया में कदम रखता है ।
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फिर कहीं आगमन तो कहीं विदाई
यही सिलसिला चलता रहता है,
माँ का आंचल छोड़
दुनिया का सामना करना पड़ता है ।
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पलक झपकते ही
बालपन विदा होकर, किशोरावस्था से
निकलकर युवावस्था आ खड़ा होता है,
युवावस्था खूब सपने दिखाता है ।
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सपने भी कब होते हैं अपने,
शनैः-शनैः उसकी भी होती रहती है विदाई ।
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एक घर से, दूसरे घर
एक शहर से, दूसरे शहर
ये जीवन का हिस्सा बन जाता है,
इसी दौड़ में भागते-भागते
प्रौढ़ावस्था से निककर
बृद्धावस्था का पदार्पण हो जाता है ।
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बृद्धावस्था तक आते-आते
इस सिलसिला से थक जाते हैं हम
फिर लेकर विदाई,
पूर्व स्थान प्राप्त करने को
मन आतुर हो जाता है ।
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कहो कहाँ नहीं होती विदाई ?
जहाँ आगमन है, वहाँ होती विदाई,
आगमन से पहले होती विदाई,
आगमन के बाद भी होती विदाई ।
–पूनम झा
कोटा राजस्थान 02-10-17