विदाई
शीर्षक–विदाई…..
“बिट्टू,उठ बेटा…देर हो रही है.।”
“सोने दो न मम्मी..”
दामिनी के पल्लू को अपनी मुट्ठी मेंकसते हुये बोली बिट्टू।
“तूझे कैसे समझाऊँ,मेरी लाडो …अगर तुझे आज सोने दिया,तो तू कभी नहीं सो पायेगी …”बेबसी के आँसू छलछला आये दामिनी की आँखों मे।
पति के सट्टा खेलने की लत ने सब खत्म कर दिया था।खाते-पीते,हँसते मुस्कुराते घर को जैसे किसी की नजर लग गई । बाकी कसर सुरेश की नशे की आदत ने पूरी कर दी.।लोगों का कर्ज चुकाने के लिये उसने जो तरीका अपनाया उस से दामिनी हिल गई ।विरोध करने पर उसकी पिटाई कर दी सुरेश ने।दिन ब दिन बिगड़ती हालत देख दामिनी ने कुछ निश्चय किया। एक एन.जी.ओ. का नम्बर ढ़ूँढ़ के पति के घर से बाहर जाते ही उसने बात की ।और जैसा वो संस्था समझाती गई दामिनी करती गई ।
लेकिन दो दिन पहले पति ने विस्फोट किया.कि बिट्टू का रिश्ता तय कर दिया है।दो दिन में बिट्टू की विदाई पक्की।हक्की बक्की रह गई दामिनी।
“अभी उम्र ही क्या है उसकी .दस साल की तो हुई है”
“चुप कर ,दो दिन में इसकी विदा की तैयारी कर “दस के नोट की गड्डी उसके आगे डाल करसुरेश निकल गया ।उसके पास सिर्फ दो दिन थे।उसने संस्था में फोन कर के सारी स्थिति से अवगत कराया।और अब उसे आखरी कदम उठाना था।पति द्वारा दिये रूपयों से उसने जरूरी काम निबटाये।एक बैग में कपड़े,सर्टिफिकेट,और जरूरी सामान के साथ खाना भी पैक किया।बिट्टू का हाथ पकड़ते ही उसके हाथों पर लगी मेंहदी ने उसे रूला दिया।रेल्वे स्टेशन पर पहुँची तो रेल आचुकी थी ।जल्दी से अपनी सीट पर जाकर सामान रखा।जैसे ही रेल चलने लगी बिट्टू के वाक्य ने रूला दिया।
“मम्मी ,ट्रेन रूकबा दो,पापा तो आये ही नहीं…….”और वो चलती ट्रेन की खिड़की से ढ़ूढ़ने लगी उस पिता को जिसने एक लाख में इस मासूम ,नन्हीं कली का सौदा कर दिया था ….अपनी गलती सुधारने को..।