#विदाई गीतिका
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★ #विदाई गीतिका ★
लोग पूछेंगे तुम कहाँ हो
कैसे क्या तब कहूँगा मैं
प्राणाधिक थे तुम मेरे
बिन प्राण अब रहूँगा मैं
लोग पूछेंगे . . . . .
वो इक दूजे के पीछे छुपना
और देखकर न देखना
स्मृतियों की अविरल धारा
तिनके-सा अब बहूँगा मैं
लोग पूछेंगे . . . . .
दिनों पर छायी जा रही
वो रातों की कालिमा
कहीं दूर तुम गगन में
अब सब सहूँगा मैं
लोग पूछेंगे . . . . .
तुम बंदी सपनों की कारा में
मिलने को मन विकल
मोल मांगे कोई मिलाप का
सिर काटकर धरूँगा मैं
लोग पूछेंगे . . . . .
न रंग रूप रहा मेरा
न आँखों की पहेलियां
तुम आ रहे कोई कह दे
दु:स्वप्न-सा अब डरूँगा मैं
लोग पूछेंगे . . . . .
कल बहुत खेल खेले
वो फुलझड़ियों के मेले
सब तुम्हें सौंपता हूँ
भूलेबिसरे अब चलूँगा मैं
लोग पूछेंगे . . . . . !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२