विदाई की घड़ी आ गई है,,,
विदाई की घड़ी आ गईं है,,,
बिटिया मेरी पराई हो रही है।।
रोका बहुत इन आंखो को,,,
फिर भी आंसुओं से भरी जा रही हैं।।
शाम सुबह उसको ना पाकर,,,
पिता का हृदय रोएगा।।
जब जब याद आयेगी बिटिया की,,,
इन आंखो से आंसू छलक जायेगा।।
यादें उसकी बड़ा तड़पाएंगी,,,
आंखों को मेरे बड़ा रुलाएंगी।।
विदाई पर ही ह्रदय फट गया है,,,
पराए होने से यह रो पड़ा है।।
मेरे आंगन की वह छोटी सी गौरय्या थी,,,
दिनो रात चूं चूं करके वह गुनगुनाती थी।।
भाइयों की वह बड़ी चहेती थी,,,
मेरे घर की बिटिया संपन्नता की देवी थी।।
गुण है उसमें देवियों के जैसे,,,
हर ह्रदय को अपना बनाएगी।
मूरत है वह देवी की,,,
हर घर को स्वर्ग सा बनाएगी।।
इस जग की ये रीत किसने बनाई है,,,
अपनी होकर भी बिटिया होती पराई है।।
दर ओ दीवार, घर की गाय सब पूंछेंगें,,,
किस किस को बताऊंगा बिटिया की हो गईं शादी है।।
पलको की छांव में बिटिया को पाला है,,,
हे, ईश्वर तुम ही संभालना तुम्हारा ही सहारा है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ