विदंबना
बालापन के साथी, किशोरावस्था के सहपाठी!
यौवन के हमराही,बृद्धावस्था की तुम हो लाठी!!
तुम जीवन के आलम्ब,तुम्ही जीवन प्रतिबिम्ब!
सानिध्य तुम्हारे बिन,मेरी क्या कद क्या काठी?
जीवन संघर्ष की तुम नैया ,तुम ही रही खैवैया!
तुमको माना जीवन आधार,तुम्ही हो हर थाटी!!
चौथेपन पर मन आशंकित, कौन छोड जायेगा?
पहले तुम या पहले मै,बैरागी मन की यह बाटी!!
सर्वाधिकार सुरछित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202,नीरव निकुज,सिकंदरा,आगरा-282007
मो:9412443093