विडम्बना
..विडम्बना..
अपराधी अपना धर्म कर्म
ईमानदारी निष्ठा से करता है,
दोषी तो जनता है,
जो उसे अपनाती है,
अपना रहनुमा मसीहा
मानने लगती है।
दोषी तो राजनेता हैं
जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए
उसके कंधे मजबूत करते हैं,
दोषी तो नेता सांसद
विधायक मंत्री हैं
जो उसे राजनीतिक संरक्षण देते हैं।
गलत काम के लिए उकसाते हैं,
गलत राह दिखाते हैं,
नंबर दो का काम करने को मजबूर करते हैं
अपराधी, माफिया, बाहुबली बनाते हैं
उसे अपनी कामयाबी की सीढ़ी बनाते हैं।
फिर चुनावी चाल से
उसे नेता बनाते हैं,
जनता का रहनुमा होने का गुणगान कराते हैं ।
फिर ठेका पट्टा के नाम पर
उसी से कमीशन भी खाते हैं ,
अपनी तिजोरी भरते हैं।
अपराधी तो कुछ बड़े अफसर
पुलिसवाले ,कानून के रहनुमा भी हैं,
जो स्वहित में
अपना फर्ज भूल जाते हैं,
जो अपराधी को आजादी और
मजलूमों को कानून समझाते हैं।
शर्म तो तब और आती है
जब इनके कर्मों से
शर्म भी शरमा जाती है,
जब इनकी फर्ज से गद्दारी
इनके ही भाइयों की जान ले जाती है।
तब भी इनकी मोटी खाल
वैसी की वैसी बनी रह जाती है,
पैसे की भूख इन्हें इतना हीन बना देती है,
कि ये कर्तव्यों के प्रति लापरवाह
और अपराधियों के दलाल बन जाते हैं।
ऐसे में कुछ बेचारे
ईमानदारी कर्तव्यनिष्ठा की बलिबेदी पर
अपनी जान गवाँ देते हैं,
अपना नाम काम जरूर कर जाते हैं।
परंतु……
अपने बलिदान के बदले
अपने परिवार को जीवन भर का दर्द
और न सूखने वाले आँसू दे जाते हैं।
✒सुधीर श्रीवास्तव