विजेता
विजेता उपन्यास तीन परिवारों की कहानी है। आज पृष्ठ संख्या ग्यारह में पढ़िए तीसरे परिवार का जिक्र। यहाँ से भाग तीन शुरु होता है।
शमशेर और राजाराम के राज्यों के पास एक अन्य राज्य में रामबीर नामक एक युवा किसान रहता है। कुछ साल पहले उसके माता-पिता चल बसे थे। इसलिए उसके छोटे भाई टोपसिंह(घर का नाम टोपिया) की जिम्मेवारी भी उसी के कंधों पर है।लगभग बारह वर्षीय टोपिया अपने बड़े भाई के काम में यथासंभव हाथ बंटाता है। वह पशुओं का गोबर उठाता है, चूल्हा जलाता है और चारा भी काट लाता है। थका-हारा रामबीर जब खेत से लौटता है तो गरम-गरम अधजली रोटियाँ खाकर तृप्त हो जाता है क्योंकि उनमें उसके छोटे भाई का प्यार समाहित होता है। हाँ, वह जल्दी से शादी करना चाहता है ताकि घर व्यवस्थित हो सके।
एक दिन रामबीर के घर उसका दूर का एक रिश्तेदार पहुँचा। उसने रामबीर से दो-चार इधर-उधर की बातें करने के बाद कहा,”बेटा रामबीर! औरत के बिना घर, घर तो ना रहता। यह कहकर मानों उसने रामबीर की दुखती रग पर हाथ रख दिया था। रामबीर ने दुखी मन से कहा,”हाँ मौसा जी, माँ के जाने के बाद ये घर——,”बाकी के शब्द उसके रुंधे गले में ही अटक गए। उसे धैर्य बंधाते हुए मौसा जी ने कहा,”अब माँ तो मैं नहीं ला सकता पर तेरे लिए एक लड़की जरूर है मेरी नजर में।”
अपने दूर के उस रिश्तेदार की बात सुनकर रामबीर शरमा गया परन्तु पास ही खड़े टोपिया के मन में लड्डू फूटने लगे। वह सोचने लगा,” घर में भाभी आ गई तो मैं खूब मजे करँगा। मुझे न रोटियाँ बनानी होंगी और ना गोबर उठाना होगा। हाँ, उसकी मदद खात्तिर मैं चारा ले आया करूँगा।होली पर खूब हुड़दंग करूँगा मैं उसके साथ और यदि किसी ने उस पर रंग डाला तो मैं रंग डालने वाले से लड़ाई कर लूंगा, वो मेरी भाभी होगी। कोई और उस पर रंग क्यों—-,”।
“टोपिया!” रामबीर के द्वारा पुकारे जाने पर वह वर्तमान में लौट आया।