विजेता
आज आप पढिए विजेता उपन्यास की पृष्ठ संख्या चार।
वह खामोश था परन्तु उसके अंदर एक तूफान-सा उठ खड़ा हुआ था। भाभी द्वारा कहे गए शब्द उसे अब भी कचोट रहे थे। उसे यूं चुप देख बाला उलझन में पड़ गई। उसने खुद से ही कहा,”यें गए तो थे बड़े राज्जी होके पर आए सैं मुँह लटकाके। इसी के बात होगी?” वह अपने पति के पास जाकर बोली,”गोलू नहीं आई?”
“ना।”
“नहाई ना होगी।”
“वा ना आवै भाग्यवान।”
“क्यूं ना आवै?”
अपने पति के मुँह से कोई उत्तर न पाकर बाला फिर से बोली,”के बात होगी?” शमशेर अब भी चुप था। उसे एक दिशा में ताकते देख बाला ने जरा तैश में आकर कहा,” बोलते क्यूं ना थाहम? थाहरे चेहरे पै बारा क्यों बज रहे सैं?”
अपनी पत्नी की यह बात सुनते ही शमशेर जैसे उबल पड़ा,”ईब तूं इतणी हेजली बणगी उनकी। इतणा ए प्यार था तो साझे म्ह क्यूं ना रही? कम तैं कम मैं धोखेबाज, बेईमान तो ना बणता उनकी नजर म्ह।”
अपने पति के इस जवाब से बाला सब समझ गई। वे जब अलग हुए थे तो उसकी जेठानी ने बाला के पीहर तक उन दोनों की बुराई की थी। सभी रिश्तेदारियों में पति-पत्नी ने यह ढोल पीट दिया था कि शमशेर अपनी पत्नी का गुलाम है। वे शमशेर को मतलबी, धोखेबाज जैसे नामों से बदनाम करने लगे थे। उस वक्त उन दोनों को लगता था कि भाई-भाभी उन्हें अपने से दूर नहीं देखना चाहते, इसलिए ऐसा कह रहे हैं परन्तु आज बाला को यह अहसास हो गया था कि उनका उस वक्त का रोना विरह-दुख न होकर पगार का लालच था वरना वे मेल-मिलाप की इस पहल का स्वागत करते।
+ +भाग दो + +
शमशेर के गाँव से लगभग एक सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक अन्य गाँव में राजाराम वकील का घर स्थित है। राजाराम की पत्नी नीमो एक धार्मिक महिला है और बड़े-बुजुर्गों का सम्मान करना उसकी आदत में शुमार है। उनके घर के बाहरी हिस्से में एक बैठक है जहाँ नीमो आग,हारे व हुक्के का प्रबंध रखती है। यहाँ गाँव के बुजुर्ग हुक्के का दम भरते हुए विभिन्न प्रकार के विषयों पर वार्तालाप करते रहते हैं। जब नीमो इस घर में आई थी तो राजाराम का आंगन बच्चों की किलकारियों से गूंजता रहता था। राजाराम भी कभी-कभी उन बच्चों संग मस्ती कर लेता था।