विजेता
आज पृष्ठ संख्या तीन पढ़िए। विजेता उपन्यास को अगर आपने शुरू से नहीं पढ़ा तो आप इस अनूठी कहानी का लुत्फ नहीं उठा पाएँगे। इसलिए हर रोज पढ़िए।
“मैं ईब समझी असली मकसद। थाहम स्याणे-सपटों के धोरै जाओ सो। किसे बाबा ने बताया होगा के कन्या पै टूणा-टोटका कर दियो। थाहमनै सरम ना आती?अपणे भाई का सब कुछ लूट लिया और ईब गोलू की कोख भी लूटणा चाहो सो।”
यह सुनते ही शमशेर आत्म-ग्लानि से भर गया। अपनी भाभी की तरफ घृणित दृष्टि डालकर वह बोला,”थूकता हूँ मैं तेरी घटिया सोच पै।जो मन्नै न्यू बेरा होंदा के तूं भीतर तैं इतणी बेईमान और घटिया लुगाई सै, मैं अपणी भतीजी नै बुलावण ना आता।”
शमशेर ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी भाभी उस पर इतणा घटिया इल्जाम भी लगा सकती है।
अपनी नम आँखों को छुपाने की कोशिश करते हुए वह अपने भाई के घर से बाहर निकल गया।उसके जाते ही भाभी पहले से भी ऊँचे स्वर में बोलने लगी,”अपणी सगी भतीजी पै टूणे-टोटके करण चाल पड़्या यो पापी।इसे कसाई नै तो ऊपरवाला सात जलम भी ऊलाद ना देवै। हमनै तो वो इसे कसाई की परछाई तैं भी दूर—–।”
वह बोले जा रही थी और कुछ पड़ौसी उसकी बकवास को यूं ध्यान-कान लगाकर सुन रहे थे मानों किसी संत महात्मा के प्रवचन चल रहे हों।
शमशेर का घर अपने भाई से काफी दूर था। इसलिए बाला को झगड़े के बारे में कुछ भी पता नहीं था।वह मालपूए बनाते-बनाते सोच रही थी,”जो होग्या,सो होग्या।ईब हम दुराणी- जेठाणी मिलके रहवैंगे। वा बड्डी- स्याणी सै,मैं उसका कहा मानूंगी। वा दिल की बुरी ना सै। बस जुबान की थोड़ी कड़वी सै। उसकी आतमा साफ सै। वा म्हारा बुरा थोड़़ा चाहवैगी! जेठ जी भी अपणे छोटे भाई तैें कितणा प्यार करै सैं। ज्यब न्यारे होये थे तो क्यूकर बालक की तरियाँ रोवैं थे।न्यारा तो सारा देश होवै सै पर न्यारे होके भी एक होके रहा जा सकै सै, या बात हम दिखावैंगे गाम नै।भाई के तो भाई ही काम आया करै। मैं आज सकरांत के दिन मना ल्यूंगी अपणे जेठ-जेठाणी—–।”
“बाला!” अपणे पति के मुँह से अपना नाम सुनते ही बाला की विचार-श्रंखला टूट गई। हमेशा भाग्यवान नाम से पुकारने वाला पति उसे उसके असली नाम से पुकार बैठा! वह हैरान हो बोली,”थाहमनै मेरा नाम लिया?”
“मालपूड़े बणगे भाग्यवान?”
“हाँ बणगे। मन्नै घणे बणा दिये। गोलू के हाथ जेठ-जेठाणी खात्तर भी भेज दूँगी।”
अपनी पत्नी के मुँह से यह बात सुनकर शमशेर चुपचाप अंदर जाकर बैठ गया।