विजात छंद
???प्रार्थना???
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प्रभु मेहमान बन आओ।
साक घर मेरे भी खाओ।।
विदुर के घर गये थे तुम।
चखे थे बेर सबरी तुम।
अहिल्या तार आये थे।
दैत्य संहार आये थे।
नाथ दुख नाश कर जाओ।
प्रभु मेहमान बन आओ।।
नाथ आतिथ्य स्वीकारो।
विकट भवजाल से तारो।
नहीं कोई सहारा है।
कहाँ दिखता किनारा है।
नाथ पतवार बन जाओ।
प्रभु मेहमान बन आओ।।
द्रौपदी चीर रक्षक तुम।
जगत के पीर भक्षक तुम।
नाथ तेरा सहारा है।
तभी तुझको पुकारा है।
मुझे भी आश दे जाओ।
प्रभु मेहमान बन आओ।।
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन”