विजात छंद
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विजात छंद
———-( 14 मात्रा- मापनी 1222 1222 )
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बड़ा नटखट कन्हैया है ।
चराता वन में’ गैया है ।।
बजाता बाँसुरी प्यारी ।
वही कहलाय बनवारी ।।1
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वही है नंद का लाला ।
उसी के संग हैं ग्वाला ।।
यशोदा का वही छैया ।
लगाता पार वो नैया ।।2
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उसे ही कृष्ण कहते हैं ।
हमारे उर में रहते हैं ।।
उसे है राधिका प्यारी ।
कहाया वो हि गिरिधारी।।3
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वही माखन चुराता है ।
वही नटवर कहाता है ।।
सभी गोपी उसे चाहें ।
पकड़ लेतीं बढ़ा बाहें ।।4
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नचातीं छाछ देकर के ।
कटोरा दूध का भर दे ।।
सभी थीं कृष्ण दीवानी।
नयन में प्रेम का पानी ।।5
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नमन स्वीकार कर लीजे।
हमें अपनी कृपा दीजे ।।
शरण रखना हमें राधा।
हमारी काट दो व्याधा ।।6
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-महेश जैन ‘ज्योति’,
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