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17 Oct 2018 · 1 min read

विजय पर्व – डी. के. निवातिया

रावण का अंत… सदियों पहले हो गया था
उसके अनगिनत पुतले
हम वर्ष दर वर्ष जलाते है ..
पर वो मरा कहाँ ?
आज भी जीवित है !
हम इंसानो के मध्य…
किसी प्रेत आत्मा की तरह …
जिसका शरीर तो असतित्व में नही
मगर आत्मा अभी भी विचरण करती है ….
ठीक उसके वास्तविकता स्वरुप की तरह ..
जिसका एक सिर काटने से दुबारा उत्पन्न हो जाता था .. !
आज भी ऐसे ही है ..
उसके जितने पुतले हम फूंकते है
उससे ज्यादा उसके विचार, व्यवहार और उसकी मानसिकता मनुष्य में बसेरा कर जाती है …!
चिर काल की तरह,
कोई राम आज भी किसी झाड़ फूंस की कुटिया में जीवन व्यतीत करने को मजबूर है …!
और मानव रूपी दानव बन के रावण आज भी सोने की लंका में बैठे हुंकार भरता है … !
बेबस सीता रूपी नारी आज भी लाचार नजर आती है …
वानर सेना रूपी युवा शांत है ….!
किसी राम के आने की बाट जोहता नजर आता है ..!
जाने कब …किसी युग पुरुष के रूप में कोई राम अवतरित होगा ….!
जो दानव ग्रस्त इस व्यवस्था को रावण रूपी आत्मा से मुक्ति दिलाएगा ….!
सही मायने में उस दिन “विजय पर्व” मनाया जाएगा ….!!!
!
!
!
————–@ -:: डी. के. निवातिया ::- @————

Language: Hindi
2 Likes · 210 Views
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