विजय पथ
उल्का पिण्ड बरसते रहे ,
फिर भी हम उन्हें सहते रहे ।
उस नीरस आंखों में आंसू न झलके,
हृदय की प्यास गहरती रही ।
भाप बन कर उड़ गई वह याद,
अंगारों के जख्म न भरे ।
हम फिर भी सोचते रहे,
कभी-न-कभी वह जख्म भरेंगे ।
वह पिंड एक-न-एक दिन ठंडे पड़ेंगे,
जब आँसुओं की बरसात उन पर होगी ।
इंतजार हमें उस दिन का होगा,
जब मेहनत अपनी रंग लाएगी ।
कहीं-न-कहीं फिर भी वह याद आएगी ,
जख्म के निशान हमें बताएंगे ।
मुश्किलों से गुजर कर हमने आज पाया ,
अपनी खुशियों का आशियाना ।
अंगारे आज हमसे खुद डरेंगे ,
संघर्ष से कहीं दूर हताशा पर बरसेंगे ।
मेहनत फिर रंग लाएगी,
संघर्ष उन पर विजय पाना सिखाएगी ।
# बुद्ध प्रकाश ….
मौदहा ,हमीरपुर(उ०प्र०)