विजय द्वार (कविता)
विजय द्वार
उठ जाग-ए- पथिक
जब जागे तभी सवेरा हो
अब सोचने में देर ना कर
मार्ग तेरे इंतजार में है
मिलों का सफर है तो क्या
दिल में इक आस तो है माना पथरीला मार्ग है तो क्या
टेढ़े-मेढ़े रास्ते हैं तो क्या
मुश्किलें होंगी कदम कदम पर तो क्या जिंदगी में पड़े तुझे जूझना तो क्या
मंजिले दूर है तो क्या
कांटो भरा सफर है तो क्या
रखने हैं कदम संभाल संभाल कर तो क्या तपिश में भी तुझे जीना पड़े तो क्या प्यास में भी तुझे रहना पड़ी तो क्या
कंकर से भरने पड़ी झोली तो क्या
खून का पसीना करना पड़े तो क्या
कांटों पर तुझे चलना पड़े तो क्या
सामने तेरे विजय द्वार तो है