विजया घनाक्षरी
शिक्षक
समाज को निखारते, भविष्य को संवारते,
सभी को ज्ञान वारते, वो शिक्षक महान हैं।
नित ठोक ठाककर, तन मन जाँचकर,
गुण-दोष नापकर, सुधारते वो कान हैं।
श्रेष्ठ के वो पक्षधर, सोच में भी हैं प्रखर,
जाने जाते विद्याधर, बड़े ही ज्ञान वान हैं।
शाम हो सवेर तुम, सीखो बेर बेर तुम,
लगाये रहो टेर तुम, वो रीत के विहान हैं।
स्वरचित
-गोदाम्बरी नेगी