विजया घनाक्षरी (मंदोदरी रावण)
विजया घनाक्षरी
32 वर्ण 8-8-8-8 पर यति लघुगुरू अनिवार्य तुकान्त सहित ।
मंदोदरी रावण
कहाँ से भूल में परे, कलंक से भी न डरे,
गुमान हिय में भरे,कदर खोई मान की।
वानर पार पा गया,समुद्र लाँघ आ गया,
अशोक बाग खा गया, फिकर करो हान की।
पुलस्त कुल कान की,मिटी है बात शान की,
यही है गली ज्ञान की,लौटा दो अभी जानकी।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर