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5 May 2023 · 1 min read

“विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम् ।

“विचित्रे खलु संसारे नास्ति किञ्चिन्निरर्थकम् ।
अश्वश्चेद् धावने वीरः भारस्य वहने खरः ॥”

इस विलक्षण संसार में निश्चय ही कुछ भी निरर्थक नहीं है। यदि घोड़ा दौड़ने में वीर है तो गधा भार को ढोने में।

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